नारी
By सत्येन्द्र नारायण सिंह
नारी!तुम हो शक्ति स्वरूपा,
फिर तुम क्यों घबराती हो?
दुनिया का प्रपञ्च सुनकर,
जीवन से क्यों उकताती हो?
हमें बताओ किस से कम हो, छिपी हुई है कमी कहाँ?
ज्योत्स्ना की धबल कीर्ति हो,
ज्ञान दीप्ति जल रही जहाँ।
सबल रूप हो दुर्गा की तुम,
काली की उद्दाम भी हो।
सरस्वती की महिमा हो, अविरल-सेवा की धाम भी हो। दया धर्म की तुम जननी हो,
ममता की तुम हो द्योतन।
करुणा की अजस्र धार हो, जन-जन की तू अभ्यर्चन।
मुझे बताओ कहाँ कमी है,
कहाँ कलंक की छाया है?
प्रकीर्ण हो रही कीर्ति तुम्हारी, कण-कण में तेरी माया है।